‘‘परमात्मा, आत्मा तथा मानवता‘‘
आत्मा की उत्पत्ति परमात्मा ने की। आत्मा तथा परमात्मा का नाता पुत्र तथा पिता का है। आत्मा अपनी गलती से अपने पिता से बिछुड़ कर काल ब्रह्म के साथ यहाँ काल लोक में आ गई। यहाँ आने के पश्चात् काल ब्रह्म ने इसको विकार ग्रस्त कर दिया तथा त्रिगुण माया के द्वारा इसकी अन्तकरण वाली चेतना समाप्त कर दी तथा इसको जीव संज्ञा दे दी। जिस भी प्राणी के शरीर में यह आत्मा जाती है। उसी के अवगुण तथा गुण से प्रेरित रहती है। यह अपना मूल स्थान मूल मालिक (पिता) भूल चुकी है। यहाँ काल ब्रह्म के लोक में जन्म-मरण के चक्र में कष्ट पर कष्ट उठा रही है। इस आत्मा को इस महाकष्ट से बचाने के लिए तथा पुनः उसी स्थान पर ले जाने के लिए स्वयं परमात्मा आते हैं। जब यह आत्मा मानव शरीर प्राप्त करती है। केवल उसी समय इसका उद्धार हो सकता है। परंतु यथार्थ ज्ञान तथा भक्ति विधि यथार्थ न होने के कारण मानव शरीर धारी आत्मा भक्ति से होने वाले लाभ प्राप्त नहीं कर पाती। जिस कारण से भक्ति कम विकार अधिक करने लग जाते हैं। आत्मा के उद्धार के लिए प्रथम समाज सुधार की अति आवश्यकता है क्योंकि समाज में फैली कुरीतियों तथा बुराइयां आत्मा को भक्ति में सफल नहीं होने देती। इसलिए वर्तमान में भक्ति युग प्रारम्भ है। भविष्यवक्ताओं ने कहा है कि भारत आजाद होने के 4 वर्ष पश्चात् अर्थात् सन् 1951 में एक महापुरूष का जन्म होगा जो मानवता का उत्थान आध्यात्मिक क्रान्ति लाकर करेगा। जब कलयुग 5505 वर्ष बीत जाएगा तब उसकी गतिविधि तेज हो जाएगी तथा 21 वीं सदी के प्रारम्भ में विश्व में शान्ति होगी। कलयुग 5505 वर्ष सन् 1997 में बीत चुका है। पूरे विश्व का कल्याण होगा, सतयुग जैसा वातावरण होगा। उस महान संत के विचारों से प्रभावित होकर एक धार्मिक संस्था बनेगी जो उस संत के विचारों को भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में फैलाएगी। भ्रष्टाचारी व्यक्तियों में हड़कंप मचेगा। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें पुस्तक मानवता का ह्रास तथा विकास के पृष्ठ 58 से 117 पर। परमात्मा की प्रेरणा से समाज को विकार रहित तथा भक्ति युक्त करके मानवता के उत्थान करने के लिए राष्ट्रीय समाज सेवा समिति गठित की गई है।
पूर्ण मोक्ष मार्ग तथा परमात्मा से पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए पढ़ें2 पंचायती का कर्तव्य पुस्तक ‘‘ज्ञान गंगा‘‘ निशुल्क प्राप्त करें। पुस्तक मंगवाने के लिए निम्न सम्पर्क सूत्रों पर अपना पूरा पता SMS करें।
सम्पर्क सूत्र :-
फ्रांस के प्रसिद्ध भविष्यवक्ता नास्ट्रदमस तथा अमेरिका की भविष्यवक्ता फ्लोरेंस ने कहा है कि भारत में एक संत आध्यात्मिक क्रांति लाएगा। उसके विचारों को पूरा विश्व स्वीकार करेगा। मानवता का उत्थान होगा। यह इसका प्रभाव 20 वीं सदी के अन्त से शुरू होगा तथा 21 वीं के प्रारम्भ में सर्व के समक्ष होगा। उस संत के विचारों से प्रभावित होकर एक धार्मिक संस्था बनेगी और पूरे विश्व में मानवता का संदेश पहुंचेगा – धरती स्वर्ग समान होगी। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें पुस्तक मानवता का ह्रास तथा विकास के पृष्ठ 58 से 117 पर।
‘‘राष्ट्रीय समाज सेवा समिति’’ का उद्देश्य तथा कत्र्तव्य’’
राष्ट्रीय समाज सेवा समिति दूसरे शब्दों में एक धार्मिक पंचायत है।
‘‘पंचायती का कर्तव्य‘‘
अधिकतर पंचायतें अपना कर्तव्य भूल चुकी हैं क्योंकि पंचायतें धर्मनीति को छोड़कर राजनीति तक सीमित हो चुकी हैं। इसी प्रकार विधान सभा जो प्रान्त की पंचायत है, वह भी राजनीति पर ही आधारित हो गई है, धर्मनीति भूल गई है। इसी प्रकार संसद (राज्य सभा तथा लोक सभा) भी राजनीति से पूर्ण रूप से ग्रस्त होकर धर्मनीति से दूर हो चुकी है। राजनीति से एक पक्ष को राहत तथा दूसरे पक्ष को कष्ट सदा बना रहेगा, केवल धर्मनीति से सर्व को लाभ होता है।
महाभारत में एक प्रकरण आता है:-
जिस समय द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था। उस समय भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा करण इन सबकी दुर्याेधन राजा द्वारा विशेष आवाभगत की जाती थी, इसी कारण से राजनीति दोष से ग्रस्त होकर अपने कर्तव्य को भूल गए थे। पाण्डव अपनी बेवकूफी के कारण राजनीति के षड़यंत्र के शिकार होकर विवश हो गए थे।
उस सभा (पंचायत) में एक धर्मनीतिज्ञ पंचायती विदुर जी थे। उसने स्पष्ट कहा।
आदरणीय गरीबदास जी की वाणी में:-
विदुर कह यह बन्धु थारा, एकै कुल एकै परिवारा।
दुर्याेधन न जुल्म कमावै, क्षत्रीय अबला का रक्षक कहावै।
अपनी इज्जत आप उतारै, तेरी निन्द हो जग में सारै।
विदुर के मुख पर लगा थपेड़ा, तू तो है पाण्डवों का चेरा (चमचा)।
तू तो है बान्दी का जाया, भीष्म, द्रोण करण मुसकाया।
भावार्थः- उस पंचायत में केवल धर्मनीतिज्ञ पंचायती भक्त विदुर जी थे। निष्पक्ष वचन कहे कि हे दुर्योधन! कुछ विचार कर आपके कुल की बहू (द्रोपदी) को नंगा करके आप अपनी बेइज्जती आप ही कर रहे हो। क्षत्रीय धर्म को भी भूल गए हो, क्षत्रीय तो स्त्री का रक्षक होता है।
बुद्धि भ्रष्ट अभिमानी दुर्योधन ने पंचायती की धर्मनीति को न मानकर उल्टा अपने भाई दुशासन से कहा कि इस विदुर को थप्पड़ मार। दुशासन ने ऐसा ही किया तथा कहा कि तू तो सदा पाण्डवों के पक्ष में ही बोलता रहता है, तू तो इनका चमचा है। अहंकारी दुर्योधन ने राजनीतिवश होकर अपने चाचा विदुर को भी थप्पड़ मारने की राय दे दी। विदुर धर्मनीतिज्ञ पंचायती सभा छोड़कर चला गया। पंचायती का यह कर्तव्य होना चाहिए। सत्य कह, नहीं माने तो सभा छोड़कर चला जाना चाहिए।
परंतु उस सभा में द्रोपदी को नंगा किया जा रहा था। भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, करण फिर भी विद्यमान रहे। उनका उद्देश्य क्या था? स्पष्ट है उनमें महादोष था, वे भी स्त्री का गुप्तांग देखने के इच्छुक थे।
सज्जनों! यदि इन तीनों (भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य तथा करण) में से एक भी खड़ा होकर कह देता कि खबरदार अगर किसी ने ‘‘स्त्री‘‘ के चीर को हाथ लगाया। ये तीनों इतने योद्धा थे कि उनमें से एक से भी टकराने की हिम्मत किसी में नहीं थी। भीष्म दादाजी थे, प्रथम तो उसका कर्तव्य था, कहता कि दुर्योधन! द्रोपदी का चीर हरण मत कर, तुम भाई-भाई जो करना है करो। दूसरे कहना था कि हे अपराधी दुशासन! अपने चाचा पर हाथ उठा दिया तो समझो अपने पिता पर हाथ उठा दिया, उसको धमकाना चाहिए था। लेकिन राजनीति के कायल किसी ने भी पंचायती फर्ज अदा नहीं किया। उसी कारण से महाभारत के युद्ध में सर्व दुर्गति को प्राप्त हुए। केवल विदुर ही धर्मात्मा था जो अच्छा पंचायती था। इसलिए अब एक धार्मिक पंचायत ‘‘राष्ट्रीय समाज सेवा समिति‘‘ का गठन किया गया है।